Thursday, July 2, 2020

झूठ बोलने से बचना चाहिए


"धर्म दुु:खको, शोकको मिटाता है और सुख प्रदान करता है। यह सुख कौन देता है? बुद्ध नहीं देते। यह आपके अंदर जागृत अनित्य विद्या है जो सुख देती है। हमें विपश्यना का अभ्यास करना चाहिए ताकि अनित्य विद्या का ज्ञान हमेशा होता रहे, अनित्यता का दर्शन सदा प्रतिक्षण होता रहे, यह कभी अन्तर्धान न हो जाय। हमलोग कैसे अभ्यास करें? चार तत्त्वों पर ध्यान  केन्द्रित करो, शांत होकर समाधि का अभ्यास करो और शील को भंग मत करो। झूठ बोलने से बचना चाहिए, यह शील जल्दी टूटता है। मुझे दूसरो से इतना भय  नही, लेकिन झूठ बोलकर मैं अपने शील के आधार को कमजोर बनाता हूं। जब शील कमजोर हो तो समाधि भी कमजोर होगी और प्रज्ञा भी कमजोर हो ही जायगी। सत्य बोलें, नियमित अभ्यास करें, समाधि को दृढ़ बनावें और इस पर ध्यान दें कि आपके शरीर पर हो क्या रहा है। ऐसा करने से अनित्यता की प्रकृति स्वाभाविक रूप से प्रकट होगी। ..." 
— सयाजी ऊ बा खिन।
अर्थात- एक धार्मिक व्यक्ति को न झूूठ बोलना चाहिए, न कुछ छिपाना चाहिए। (सं .)
(सयाजी जर्नल में प्रकाशित सयाजी ऊ बा खिन का व्याख्यान- 'मार की दस सेनाएं '- से साभार उद्धृत)