Friday, July 17, 2020

प्रश्न उत्तर -- श्री सत्यनारायण गोयन्का

प्रश्न :- सही  गलत काम वासना में क्या अंतर है क्या यह चेतना का प्रश्न है? 

स. ना. गोयन्का : नहीं, कामवासना का एक गृहस्थ के जीवन में उपयुक्त स्थान है। इसे जबरदस्ती दबाया नहीं जाना चाहिए क्योंकि लादे हुए ब्रह्मचर्य से तनाव उत्पन्न होता है जिससे और समस्याएं, कठिनाइयां बढ़ती है तथापि यदि आप अपनी कामवासना को खुली छूट देते हैं और कामुकतावश किसी के साथ भी संभोग करते हैं तब फिर आप अपने चित्त को काम वासना से मुक्त नहीं कर सकते, समान रूप से खतरनाक इन दोनों अतियों को छोड़कर धर्म एक मध्यम मार्ग प्रदान करता है, संभोग एक स्वस्थ अभिव्यक्ति है जहां आध्यात्मिक उन्नति की गुंजाइश है और वह है एक नर-नारी का याैन संबंध जो एक दूसरे के साथ प्रतिबद्ध हो। और यदि आपका सहभागी भी विपश्यी साधक है तब जब कभी कामवासना जागती है आप दोनों तटस्थ भाव से उसका निरीक्षण करते हैं यह न उसे दबाना हुआ और न खुली छूट देना। देखते देखते आप सरलतापूर्वक काम वासना से मुक्त हो सकते हैं। कभी-कभी कोई दंपत्ति अब भी यौन संबंध रखना चाहेंगे परंतु धीरे-धीरे एक ऐसे सोपान पर पहुंच जाएंगे जहां कामवासना की कोई सार्थकता नहीं रहेगी। यही वास्तविक और नैसर्गिक ब्रह्मचर्य का सोपान है जबकि चित्त में कामवासना का विचार तक नहीं जागता। यह ब्रह्मचर्यसूख यौन संतुष्टि से कहीं श्रेष्ठतर है। आप सदा संतुष्टि-सामंजस्य का अनुभव करते हैं। हमें इस वास्तविकता को सीखना चाहिए। 

प्रश्न :- पश्चिम में अनेक लोग यह मानते हैं कि परस्पर सहमति के साथ किन्ही दो वयस्कों के बीच याैन संबंध स्वीकार्य है? 

स. ना. गोयन्का : यह सोच धर्म से बहुत दूर है जो व्यक्ति आज किसी एक के साथ यौन संबंध रखता है फिर दूसरे के साथ और फिर किसी अन्य के साथ वह अपनी कामवासना को और दुःख को कई गुना बढ़ाता है आपको किसी एक के साथ प्रतिबद्ध होना चाहिए अथवा ब्रह्मचर्य का जीवन जीना चाहिए।

प्रश्न :- क्या मांस खाना शील भंग है? 

नहीं, जब तक कि आप स्वयं पशु हत्या नहीं करते हैं। यदि आपको मांस परोसा जाता है और आप किसी अन्य खाद्य पदार्थ के समान इसके स्वाद का आनंद उठाते हैं, आपने शील को नहीं तोड़ा है। परंतु इसमें संदेह नहीं कि आपने मांस खाकर अप्रत्यक्ष रूप से किसी अन्य को पशु-हत्या का शील तोड़ने के लिए प्रेरित किया है। अधिक सूक्ष्म स्तर पर आप मांस खाकर अपनी हानी करते ही है। प्रत्येक क्षण जब कोई पशु राग-द्वेष जगाता है, वह अपना निरीक्षण करने और अपने चित्त को शुद्ध रखने में समर्थ नहीं होता है, उसके शरीर का रेशा रेशा राग-द्वेष से आप्लावित हो जाता है। मांस खाते हुए आप राग-द्वेष के इस निवेश को ग्रहण करते हैं। साधक राग द्वेष का क्षय करने का प्रयास करता है इसलिए इस प्रकार का भोजन ना करने से उसे इस काम में सहायता मिलती है।

प्रश्न :- क्या इसीलिए विपस्सना शिविरों में केवल शाकाहारी भोजन दिया जाता है? 

उत्तर : हां, क्योंकि विपश्यना साधना के लिए यही सबसे अच्छा है।

प्रश्न :- क्या आप दैनिक जीवन में भी शाकाहारी भोजन की संस्तुति करते हैं?
 उत्तर : हां, यह भी सहायक है

प्रश्न :- पांचवां शील क्या है- नशीले पदार्थों से दूर रहना अथवा मदहोश नहीं होना ?देखा गया है कि बिना मदहोश हुए संयम के साथ पीना खास तौर पर हानिकारक नहीं मालूम पड़ता। अथवा क्या आप यह कहना चाहते हैं कि एक गिलास शराब पीना भी शील भंग है?'

उत्तर : अल्पमात्रा में भी पीने से, अंत में आप शराब के व्यसन का शिकार हो जाते हैं। प्रारंभ में आप यह अनुभव नहीं करते परंतु शराब पीने के व्यसनकी ओर एक कदम आप आगे बढ़ाते हैं जो सचमुच ही आपके और दूसरों के लिए हानिकारक है। प्रत्येक शराबी एक गिलास से ही शुरू करता है। दु:ख की ओर (इस एक गिलास से) पहला कदम क्यों उठाएं ? यदि आप गंभीरतापूर्वक साधना करते हैं और आप किसी दिन भूल से अथवा किसी सामाजिक समारोह में एक गिलास शराब पी लेते हैं, उस दिन आपको पता चलेगा कि आपकी साधना कमजोर है। नशे का सेवन तथा धर्म का पालन साथ-साथ नहीं होता । यदि आप धर्म में सचमुच आगे बढ़ना चाहते हैं तो आपको सभी नशीले पदार्थों से दूर रहना चाहिए। यह हजारों साधकों का अनुभव है।